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ToggleZombie Virus : हो सकती है महामारी जानें Detail में
2013 में साइबेरिया में पहचाने गए 30,000 साल पुराने वायरस से भी पुराना है ये Zombie Virus.
पर्माफ्रॉस्ट में खोजा गया 48,500 वर्ष पुराना Zombie Virus अभी भी फैल सकता है। वैज्ञानिकों की महीनों की अध्ययन और जांच के उपरांत बताया गया कि पिघलते ग्लेशियर की निरंतरता से पुराने वायरस, बैक्टीरिया और पैथोजेंस नई बीमारियों का जन्म हो सकता है |
अभी कोरोना वायरस से लोग उभर ही पाए है कि वैज्ञानिकों ने ऐसी चेतावनी दी कि अब सतर्क रहने की जरूरत है, बर्फ की चोटियों के नीचे पल रहा खतरा किसी भी समय घातक साबित हो सकता है | अगर यह संक्रमण फैलने की स्थिति में आता है तो स्वास्थ्य आपातकाल भी शुरू हो सकता है |
वैज्ञानिकों द्वारा साइबेरिया के पर्माफ्रॉस्ट से एक प्राचीन वायरस खोज निकाला था। जिसके बारे में यह बताया गया वायरस 48500 वर्षों से कम तापमान में भी जीवित मिला और संभावना यह बताई जा रही है कि अगर ग्लेशियर पिघलते हैं तो इसके फैलने के आसार बने रहेंगे हालांकि अभी तक कोई पशु-पक्षी, जीव-जंतु इस वायरस की चपेट में नहीं आया है |
वैज्ञानिकों ने यह जानकारी दी कि Zombie Virus काफी खतरनाक साबित हो सकता है| यह अभी भी संक्रमण फैलाने में पूरी तरह से कारगर हो सकता है दुनिया में इसको लेकर काफी चिंता जताई जा रही है | वायरस ने एक कोशिका वाले अमीबा को भी संक्रमित किया है।
पर्माफ्रॉस्ट से निकलने वाले वायरस लोगों को खतरे में डाल सकते हैं। पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी की परत सदियों तक बर्फ में रहती है। लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग जिस हिसाब से बढ़ रहा है, उससे पर्माफ्रॉस्ट पिघलने का खतरा धीरे-धीरे बढ़ रहा है |
Zombie Virus ऐसे फैल सकता है :
जॉम्बी वायरस का संक्रमण टूटी हुई त्वचा के माध्यम से दूषित ऊतकों को काटकर लोगों में फैलता है। रेबीज वायरस , एचआईवी, क्रुट्ज़फेल्ट-जैकब रोग, सीएमवी और हर्पीस वायरस अन्य संभावित संक्रमण इसी वायरस की श्रेणी में आते है । Zombie Virus नामक तेरह नए रोगाणु है |
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पर्माफ्रॉस्ट की इस जाँच से हुआ खुलासा :
पर्माफ्रॉस्ट एक स्थायी रूप से जमी हुई परत है जो पृथ्वी की सतह पर या उसके नीचे होती है। इसमें मिट्टी, बजरी और रेत होती है, जो अक्सर बर्फ से मिली होती है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान से जमी हुई बर्फ पिघलने लगी है, जिससे खतरा बढ़ चुका है। पिछले साल साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट से लिए गए कुछ नमूनों पर एक वैज्ञानिक ने अध्ययन किया, जिसमें नीचे दबे वायरस का पता लगाया गया था और इन वायरस से जुड़े खतरों को बेहतर ढंग से समझा गया।
जीवित संस्कृतियों पर अध्ययन से पता चला कि प्रत्येक “ज़ोंबी वायरस” फैल सकता है, जो “स्वास्थ्य के लिए खतरा” बन सकता है।
महामारी के और अधिक फैलने की आशंका है क्योंकि माइक्रोबियल कैप्टन अमेरिका जैसे लंबे समय से निष्क्रिय वायरस पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मुक्त हो जाते हैं। वैज्ञानिकों का डर है कि पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने पर निकलने वाले “पुनर्जीवित” वायरस और अन्य सूक्ष्मजीव भविष्य में लोगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ग्रीनपीस ने कहा कि “पुनर्जीवित” रोगाणु महामारी को जन्म दे सकते हैं।
उनका दावा है कि आर्कटिक में मिले वायरस हजारों साल से जमे हुए हैं और ये ऐसे वायरस हैं जो मनुष्यों को संक्रमित करने और एक नई बीमारी का प्रकोप शुरू करने की क्षमता रखते हैं।
हमें यह मानकर चलना होगा कि यह जोखिम से भरपूर है एवं आने वाले समय में यह किसी भी तरह से एक एक महामारी भी बन सकती है |
वैज्ञानिकों द्वारा अभी यह बता पाना मुश्किल है कि ये किसी जीव के संपर्क में आने पर क्या कर सकते है | उन्होंने कहा कि यह अनुमान लगाना असंभव है कि पिघलते हुए पर्माफ्रॉस्ट में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव लोगों को नुकसान पहुंचाएंगे या नहीं।
जानें पर्माफ्रॉस्ट के बारें में :
उत्तरी गोलार्ध का एक-चौथाई हिस्सा स्थायी रूप से जमा हुआ है, जिसे पर्माफ्रॉस्ट के रूप में जाना जाता है| पर्माफ्रॉस्ट कार्बनिक पदार्थ सहित लाखों वर्ष पुरानी बर्फ छोड़ता है, जो कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन में बदल जाता है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ जाता है। एककोशिकीय यूकेरियोट्स, पुनर्जीवित प्रोकैरियोट्स और प्रागैतिहासिक काल के वायरस कार्बनिक पदार्थ जैसे हैं।
औद्योगीकरण के कारण अधिक लोग आर्कटिक की ओर पलायन करेंगे और पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है तो जोखिम की संभावना है और अधिक हो सकती है।
पर्माफ्रॉस्ट, ठोस रूप से जमे हुए वायरस और बैक्टीरिया का घर है, जो उत्तरी गोलार्ध का लगभग एक चौथाई हिस्सा कवर करता है।
जानकारों के मुताबिक, अगर पर्माफ्रॉस्ट निरंतर पिघलता है तो जमी हुई जैविक पदार्थ बाहर निकलने की कोशिश करेंगे। जब कार्बनिक पदार्थ विघटित होते हैं, तो मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में निकलने की सम्भावना हो सकती है |