Table of Contents
ToggleElectoral Bonds in Details : चुनावी बॉन्ड का शुरुआती विवरण समझे
चुनावी बॉन्ड्स की अवधि सिर्फ 15 दिनों की होती है, जारी होने के 15 दिनों की अवधि के भीतर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान दिया जा सकता है।
है। Electoral Bonds के अंतर्गत केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के पिछले आम चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट प्राप्त किए हों|
Electoral Bonds को विस्तार से समझते है –
इलेक्टोरल बॉन्ड एक प्रकार का वित्तीय उपकरण है जो ब्याज मुक्त बैंकिंग टूल और प्रॉमिसरी नोट की तरह काम करता है। आरबीआई द्वारा निर्धारित केवाईसी शर्तों को पूरा करने के पश्चात भारत में पंजीकृत कोई भी व्यक्ति या संस्था इन बांडों को खरीद सकता है।
Electoral Bonds के अंतर्गत किसी भी राजनीतिक दल को चंदा दिया जा सकता है। इसे एक वचन पत्र की तरह मापा जा सकता है जिसे भारत के किसी भी नागरिक या कंपनी द्वारा भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीदकर गुमनाम तरीके से किसी भी चुने हुए राजनीतिक दल को दिया जा सकता है।
योजना के अंतर्गत भारतीय स्टेट बैंक की विशिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड चेक या डिजिटल भुगतान के माध्यम से ख़रीदे जा सकते हैं।
इसे तरह योजना के अंतर्गत, राजनीतिक दलों को धन देने के लिए भारतीय स्टेट बैंक बॉन्ड जारी कर सकता है।
Electoral Bonds योजना की शुरुआत –
केंद्रीय बजट 2017-18 के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में धन विधेयक पेश किया, जिसे धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 का उल्लंघन था |
भारत सरकार द्वारा इस योजना को 29 जनवरी 2018 को पूर्ण रूप से क़ानूनन लागू कर दिया था |
एक अनुमान के अनुसार, मार्च 2018 से अप्रैल 2022 तक की अवधि के दौरान ₹9,857 करोड़ के मौद्रिक मूल्य के बराबर कुल 18,299 चुनावी बांड का सफलतापूर्वक लेनदेन किया गया।
सारे चंदे गुमनाम तरीके से हस्तांतरण हो रहे थे, जिसको मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने 15 फरवरी 2024 को सर्वसम्मति से इसे “आरटीआई (सूचना का अधिकार)” और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत राजनीतिक फंडिंग के बारे में मतदाताओं के जानकारी के अधिकार का उल्लंघन पाया।
Electoral Bonds से लोगो की देश के प्रति बढ़ती चिंताए –
पिछले कुछ वर्षों में बार-बार चर्चा हुई कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने वालो की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है।
इस योजना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 2017 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और गैर-लाभकारी संगठन कॉमन कॉज़ ने पहली याचिका दायर की, जबकि 2018 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने दूसरी याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस योजना से बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार वैध हो सकता है, क्योंकि भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा असीमित राजनीतिक दान और राजनीतिक दलों के गुमनाम फंडिंग के फ्लडगेट्स या “बाढ़ के द्वार” पूर्ण रूप से खुल सकते है ।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की गुमनामी एक नागरिक के ‘जानने के अधिकार’ का उल्लंघन करती है|
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इससे राजनीतिक फंडिंग में अपारदर्शिता बढ़ेगी और राजनीतिक दल ऐसी कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाने को बढ़ावा देंगे।
समझते है Electoral Bonds से पार्टियों को हुए फायदे, पूरे डाटा के साथ –
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 से 2021-22 के बीच पांच वर्षों में 7 राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉण्ड से 9,188 करोड़ रुपये प्राप्त हुए ।
9,188 करोड़ रुपये में से भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अकेले लगभग 5,272 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी थी यानी बीजेपी ने लगभग 58% कुल इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा प्राप्त किया।
इन्ही 5 वर्षो की अवधि के दौरान, इलेक्टोरल बॉन्ड से कांग्रेस को लगभग 952 करोड़ रुपये, जबकि तृणमूल कांग्रेस को 767 करोड़ रुपये मिले।
ADR द्वारा जारी रिपोर्ट के विश्लेषण में, 2019-20 (जिस वर्ष लोकसभा चुनाव हुए ) इलेक्टोरल बॉन्ड में सबसे अधिक 3,439 करोड़ रुपये का चंदा हुआ।
2021-22 (जिस वर्ष 11 विधानसभा चुनाव हुए) में राजनीतिक पार्टियों को लगभग 2,664 करोड़ रुपये का चंदा मिला।
12 अप्रैल 2019 से 24 जनवरी 2024 तक बांड्स का हस्तांतरण विवरण –
इस आधिकारिक वेबसाइट पर कंपनी द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किसी भी दल को बॉन्ड हस्तांतरण का पूरा विवरण उपलब्ध है –
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||