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Agarwood : त्रिपुरा का राजकीय वृक्ष, जिसकी कीमत सोने से भी अधिक, ₹1 करोड़ प्रति किलो

Agarwood

कुछ बातों पर यकीन करना संभव नहीं होता है, ऐसा ही है पेड़ों की किस्मो में। एक ऐसा पेड़ जिसका मूल्य सोने से भी अधिक है|हाँ, ये बात सत्य है। दुनिया में एक पेड़ ऐसा भी है, जो ₹1 करोड़/किलो बिकता है। अगरवुड की लकड़ी को ‘वुड्स ऑफ द गॉड’ कहते हैं | लेकिन इसकी संख्या काफी कम है।

वर्तमान में ये 80%  तक की कमी में पहुंच चुके है। वर्षा क्षेत्रो में होने वाला पेड जिसकी लकड़ी को Agarwood कहा जाता है। इसको अपनी अधिकतम कीमत तक पहुंचने में 5-8 वर्ष तक का समय लगता है।

किसान इसकी खेती तो करना चाहते है लेकिन इतने लम्बे समय तक का इंतज़ार हो नहीं पाता। इसीलिए आज इन Agarwood की कमी बढ़ती जा रही है, जबकि बाजार में मांग अधिक है।

आज इस लेख में Agarwood से जुड़े सारी जानकारी को आपके साथ साझा किया जायेगा।

Agarwood के कीमती होने की मुख्य वजह :

Agarwood लकड़ी से कीमती फर्नीचर तो तैयार होते ही है। इसका महत्वपूर्ण उपयोग दवा, अगरबत्ती, परफ्यूम, एयर फ्रेशनर, प्यूरीफायर और इत्र बनाने में किया जाता है।
इसकी खुशबू को मानव कृत्रिम रूप से बनाया ही नहीं जा सकता। वर्तमान में इसे लकड़ियों का देवता कहा जाता है। अगरवुड पेड़ का अधिकतम वजन 600 किलो तक हो सकता है।

जब इसे जलाया जाता है तो जरा सा धुआँ बंद कमरे को 4-5 घंटे तक सुगन्धित रख सकता है। लकड़ी को जलाने के बाद इसकी सुगंध धीरे-धीरे मीठी होने लगती है। पश्चिमी देशों में इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ती जा रही है।
एक बार पेड़ का उत्पादन कर लेने से अगले 40 वर्षो तक फायदे पहुंचाता है।

Agarwood बनता है एक्विलरिया के पेड़ से :

Agarwood को एक्विलरिया (Aquilaria malaccensis) के पेड़ से बनाने के लिए वर्षों लगते हैं। Agarwood बनने का रहस्य जैविक-अजैविक तनावों और एक्विलरिया पेड़ के घायल होने से है।
संक्रमण पेड़ों के रक्षा तंत्र को सक्रिय कर, राल का उत्पादन करते है, जो संक्रमित रोगाणुओं को पनपने नहीं देता। इस प्रक्रिया का नाम टायलोसिसके है। पेड़ के अंदर एक डार्क कलर का हिस्सा बनने लगता है, इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है।

जब एक्विलरिया पेड़ संक्रमित होता है, तो जैव रासायनिक प्रतिक्रिया होती है, जो ओलियोरेसिन बनाती है। जिसके माध्यम से लकड़ी का रंग हल्के से गहरे रंग में बदलने लगता है, इसे ही Agarwood कहते है।
साधारण भाषा में बात करें तो – जब पेड़ का एक हिस्सा बैक्टिरिया, फंगस, कीड़े मकोड़े और चिट्टियों के लार से खराब होता है, तो पेड़ अपने रस से जख्म भरता है।

फिर सुगंधित रसायन बाहर निकलते हैं। जिनकी सुगंध से मन प्रसन्न हो जाता है। इस प्रक्रिया तक पहुंचने में लंबे समय तक का इंतज़ार रहता है। Agarwood, जो व्यापार में उपयोग किया जाता है, बाहरी हिस्से को काटकर निकाला जाता है।
जंगलों में होने वाले अगरवुड को तैयार करने में वर्षों लग जाते हैं। जब ₹1 करोड़ प्रति किलो की कीमत बाजार में है, तो कुछ व्यापारी इतने लंबे समय का इंतज़ार भी करते हैं, और ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए?

Agarwood का उत्पादन 2000-4000 मिमी बारिश क्षेत्र में :

Agarwood की खेती में एक्विलारिया प्रजाति का पौधा सबसे महत्वपूर्ण है। खेत में लगाने से पहले एक्विलारिया 60 सेमी से 90 सेमी की ऊंचाई होनी जरूरी है। इनकी खेती भारत में अधिकतर असम, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में होती है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला का नाम अगरवुड से पड़ा था। Agar, त्रिपुरा का राजकीय वृक्ष भी है।

Agarwood चीन,लाओस,कम्बोडिया,सिंगापूर,मलक्का,भूटान,बांग्लादेश,म्याँमर और सुमात्रा देशो में पाया जाता है।  
अगरवुड की खेती के लिए 20-33 डिग्री तापमान और 2000–4000 मिमी बारिश क्षेत्र की आवश्यकता होती है।
Agarwood का पेड़ पीली, लाल या चिकनी रेतीली मिट्टी में उग सकता है।

Agarwood पेड़ों की कमी की वजह:

Agarwood की कमी के कई कारण हैं, लेकिन वैज्ञानिको द्वारा किये गए शोध के अंतर्गत इसे क्रिटिकली इंडेंजर्ड (गंभीर खतरे) की श्रेणी में रखा है। पिछले 150 वर्षों में 80% की कमी हुई है। प्राकृतिक फंगल इन्फेक्शन दर में कमी इसका मुख्य कारण है। अब बहुत से अगरवुड पेड़ों में फागल इन्फेक्शन नहीं होता है। इनकी जांची गयी कुल संख्या के 2% में ही ये इन्फेक्शन पनप पाता है।
इतने कीमती पेड़ को अपनी जान जोखिम में रखकर लोग इसको जंगलो में ढूंढते है। कभी कभी खाली हाथ ही जंगल से लौटना पड़ता है।

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